ेमचंद नैरा य

बा

इनम

ज आदमी अपनी लड़ कयां ह

ी से इस लए नाराज रहते ह क उसके

य होती ह, लड़के

य नह ं होते। जानते ह क

ी को दोष नह ं है , या है तो उतना ह िजतना मेरा, फर भी जब

दे खए

ी से

ठे रहते ह, उसे अभा गनी कहते ह और सदै व उसका दल

दुखाया करते ह।

न पमा उ ह अभा गनी ि

य म थी और घमंडीलाल

पाठ उ ह ं अ याचार पु ष म। न पमा के तीन बे टयां लगातार हु ई थीं और वह सारे घर क

नगाह से गर गयी थी। सास-ससु र क अ स नता

क तो उसे वशेष चंता न थी, वह पु राने जमाने के लोग थे, जब लड़ कयां गरदन का बोझ और पू वज म का पाप समझी जाती थीं। हां, उसे दु:ख अपने प तदे व क अ स नता का था जो पढ़े - लखे आदमी होकर भी उसे जल -कट सु नाते रहते थे।

यार करना तो दूर रहा, न पमा से सीधे मु ंह

बात न करते, कई-कई दन तक घर ह म न आते और आते तो कु छ इस तरह खंचे-तने हु ए रहते क न पमा थर-थर कांपती रहती थी, कह ं गरज न उठ। घर म धन का अभाव न था; पर न पमा को कभी यह साहस न होता था



कसी सामा य व तु क

इ छा भी

कट कर सके। वह

समझती थी, म यथाथ म अभा गनी हू ं, नह ं तो भगवान ् मेर कोख म लड़ कयां ह रचते। प त क एक मृदु मु कान के लए, एक मीठ बात के लए उसका को

दय तड़प कर रह जाता था। यहां तक क वह अपनी लड़ कय

यार करते हु ए सकुचाती थी क लोग कहगे, पीतल क नथ पर इतना

गु मान करती है । जब

पाठ जी के घर म आने का समय होता तो कसी-

न- कसी बहाने से वह लड़ कय को उनक आंख से दूर कर दे ती थी। सबसे बड़ी वपि त यह थी क

पाठ जी ने धमक द थी क अब क क या हु ई

तो घर छोड़कर नकल जाऊंगा, इस नरक म को यह चंता और भी खाये जाती थी।

ण-भर न ठह ं गा। न पमा

वह मंगल का कतने

त रखती थी, र ववार, नजला एकादसी और न जाने

त करती थी।

नान-पू जा तो

अनु ठान से मनोकामना न पू र

न य का

होती थी।

नयम था; पर

न य अवहे लना,

कसी

तर कार,

उपे ा, अपमान सहते-सहते उसका च त संसार से वर त होता जाता था। जहां कान एक मीठ बात के लए, आंख एक

ेम- ि ट के लए,

दय एक

आ लंगन के लए तरस कर रह जाये, घर म अपनी कोई बात न पू छे, वहां जीवन से

य न अ च हो जाय?

एक दन घोर नराशा क दशा म उसने अपनी बड़ी भावज को एक प

लखा। एक-एक अ र से अस य वेदना टपक रह थी। भावज ने उ तर

दया—तु हारे भैया ज द तु ह वदा कराने जायगे। यहां आजकल एक स चे महा मा आये हु ए ह िजनका आश वाद कभी न फल नह ं जाता। यहां कई संतानह न ि

यां उनक आश वाद से पु वती हो गयीं। पू ण आशा है



तु ह भी उनका आश वाद क याणकार होगा। न पमा ने यह प

प त को दखाया।

पाठ जी उदासीन भाव से

बोले—सृि ट-रचना महा माओं के हाथ का काम नह ं, ई वर का काम है । न पमा—हां, ले कन महा माओं म भी तो कुछ स

होती है ।

घमंडीलाल—हां होती है , पर ऐसे महा माओं के दशन दुलभ ह। न पमा—म तो इस महा मा के दशन क ं गी। घमंडीलाल—चल जाना। न पमा—जब बां झन के लड़के हु ए तो म

या उनसे भी गयी-गु जर

हू ं । घमंडीलाल—कह तो दया भाई चल जाना। यह करके भी दे ख लो। मु झे तो ऐसा मालू म होता है, पु

का मु ख दे खना हमारे भा य म ह नह ं

है ।



2 ई

दन बाद

न पमा अपने भाई के साथ मैके गयी। तीन

पु यां भी साथ थीं। भाभी ने उ ह

ेम से गले लगाकर कहा,

तु हारे घर के आदमी बड़े नदयी ह। ऐसी गु लाब –फूल क -सी लड़ कयां

पाकर भी तकद र को रोते ह। ये तु ह भार ह तो मु झे दे दो। जब ननद और भावज भोजन करके लेट ं तो न पमा ने पू छा—वह महा मा कहां रहते ह? 2

भावज—ऐसी ज द

या है , बता दूं गी।

न पमा—है नगीच ह न? भावज—बहु त नगीच। जब कहोगी, उ ह बु ला दूं गी। न पमा—तो

या तु म लोग पर बहु त

स न ह?

भावज—दोन व त यह ं भोजन करते ह। यह ं रहते ह। न पमा—जब घर ह म वै य तो म रये

य ? आज मु झे उनके दशन

करा दे ना। भावज—भट

या दोगी?

न पमा—म कस लायक हू ं? भावज—अपनी सबसे छोट लड़क दे दे ना। न पमा—चलो, गाल दे ती हो। भावज—अ छा यह न सह , एक बार उ ह

ेमा लंगन करने दे ना।

न पमा—चलो, गाल दे ती हो। भावज—अ छा यह न सह , एक बार उ ह

ेमा लंगन करने दे ना।

न पमा—भाभी, मु झसे ऐसी हं सी करोगी तो म चल आऊंगी। भावज—वह महा मा बड़े र सया ह। न पमा—तो चू हे म जायं। कोई दु ट होगा। भावज—उनका आश वाद तो इसी शत पर मलेगा। वह और कोई भट वीकार ह नह ं करते। न पमा—तु म तो य बात कर रह हो मानो उनक भावज—हां, वह यह सब वषय मेरे ह

त न ध हो।

वारा तय कया करते ह। म

भट लेती हू ं । म ह आश वाद दे ती हू, ं म ह उनके हताथ भोजन कर लेती हू ं । न पमा—तो यह कहो

क तु मने मु झे बु लाने के

लए यह ह ला

नकाला है । भावज—नह ,ं उनके साथ ह तु ह कुछ ऐसे गु र दूं गी िजससे तु म अपने घर आराम से रहा। इसके बाद दोन स खय म कानाफूसी होने लगी। जब भावज चु प हु ई

तो न पमा बोल —और जो कह ं फर भावज—तो

या ह हु ई तो?

या? कु छ दन तो शां त और सु ख से जीवन कटे गा। यह

दन तो कोई लौटा न लेगा। पु

हु आ तो कहना ह 3

या, पु ी हु ई तो फर

कोई नयी यु ि त नकाल जायेगी। तु हारे घर के जैसे अ ल के दु मन के साथ ऐसी ह चाल चलने से गु जारा है । न पमा—मु झे तो संकोच मालू म होता है । भावज— पाठ जी को दो-चार दन म प

लख दे ना क महा मा जी

के दशन हु ए और उ ह ने मु झे वरदान दया है । ई वर ने चाहा तो उसी दन से तु हार मान- त ठा होने लगी। घमंडी दौड़े हु ए आयगे और त हारे ऊपर ाण नछावर करगे। कम-से-कम साल भर तो चैन क वंशी बजाना। इसके बाद दे खी जायेगी। न पमा—प त से कपट क ं तो पाप न लगेगा? भावज—ऐसे

वा थय से कपट करना पु य है । 3

ती

न चार मह ने के बाद न पमा अपने घर आयी। घमंडीलाल उसे वदा कराने गये थे। सलहज ने महा मा जी का रं ग और

भी चोखा कर दया। बोल —ऐसा तो कसी को दे खा नह ं क इस महा मा जी ने वरदान दया हो और वह पू रा न हो गया हो। हां, िजसका भा य फूट जाये उसे कोई घमंडीलाल इन बात

पर

या कर सकता है । य

तो वरदान और आश वाद क उपे ा ह करते रहे ,

व वास करना आजकल संकोचजनक मालू म होता ह; पर

उनके दल पर असर ज र हु आ। न पमा क खा तरदा रयां होनी शु सबके

दल म नयी-नयी आशाएं

हु । जब वह गभवती हु ई तो

हलोर लेने लगी। सास जो उठते गाल

और बैठते यं य से बात करती थीं अब उसे पान क तरह फेरती—बेट , तु म रहने दो, म ह रसोई बना लू ंगी, तु हारा सर दुखने लगेगा। कभी न पमा कलसे का पानी या चारपाई उठाने लगती तो सास दौड़ती—बहू ,रहने दो, म आती हू ं, तु म कोई भार चीज मत उठाया करा। लड़ कय क बात और होती है , उन पर कसी बात का असर नह ं होता, लड़के तो गभ ह म मान करने लगते ह। अब न पमा के लए दूध का उठौना कया गया, िजससे बालक पु ट और गोरा हो। घमंडी व

ाभू षण पर उता

हो गये। हर मह ने एक-न-

एक नयी चीज लाते। न पमा का जीवन इतना सु खमय कभी न था। उस समय भी नह ं जब नवेल वधू थी। 4

मह ने गु जरने लगे। न पमा को अनु भू त ल ण से व दत होने लगा क यह क या ह है ; पर वह इस भेद को गु त रखती थी। सोचती, सावन क धू प है, इसका

या भरोसा िजतनी चीज धू प म सु खानी हो सु खा लो,

फर तो घटा छायेगी ह । बात-बात पर बगड़ती। वह कभी इतनी मानशीला न थी। पर घर म कोई चू ं तक न करता क कह ं बहू का दल न दुखे , नह ं बालक को क ट होगा। कभी-कभी

न पमा केवल घरवाल को जलाने के

लए अनु ठान करती, उसे उ ह जलाने म मजा आता था। वह सोचती, तु म वा थय को िजतना जलाऊं उतना अ छा! तु म मेरा आदर इस लए करते हो न क म ब च जनू ंगी जो तु हारे कुल का नाम चलायेगा। म कु छ नह ं हू ं, बालक ह सब-कुछ है । मेरा अपना कोई मह व नह ,ं जो कु छ है वह बालक के नाते। यह मेरे प त ह! पहले इ ह मु झसे संसार-लोलु प न हु ए थे। अब इनका

कतना

ेम केवल

ेम था, तब इतने

वाथ का

वांग है । म भी

पशु हू ं िजसे दूध के लए चारा-पानी दया जाता है । खैर, यह सह , इस व त तो तु म मेरे काबू म आये हो! िजतने गहने बन सक बनवा लू,ं इ ह तो छ न न लोगे। इस तरह दस मह ने पू रे हो गये। न पमा क दोन ननद ससु राल से बु लायी गयीं। ब चे के लए पहले ह सोने के गहने बनवा लये गये, दूध के लए एक सु दर दुधार गाय मोल ले ल गयी, घमंडीलाल उसे हवा खलाने को एक छोट -सी सेजगाड़ी लाये। िजस दन न पमा को लगी,

सव-वेदना होने

वार पर पं डत जी मु हू त दे खने के लए बु लाये गये। एक मीर शकार

बंदक ू छोड़ने को बु लाया गया, गायन मंगल-गान के लए बटोर ल गयीं। घर से तल- तल कर खबर मंगायी जाती थी,

या हु आ? लेडी डॉ टर भी बु लायी

गयीं। बाजे वाले हु म के इंतजार म बैठे थे। पामर भी अपनी सारं गी लये ‘ज चा मान करे नंदलाल स ’ क तान सु नाने को तैयार बैठा था। सार तैया रयां; सार आशाएं, सारा उ साह समारोह एक ह श द पर अवलि ब था।

य - य दे र होती थी लोग म उ सु कता बढ़ती जाती थी। घमंडीलाल

अपने मनोभाव को छपाने के लए एक समाचार –प

दे ख रहे थे, मानो

उ ह लड़का या लड़क दोन ह बराबर ह। मगर उनके बू ढ़े पता जी इतने सावधान न थे। उनक पीछ खल जाती थीं, हं स-हं स कर सबसे बात कर रहे थे और पैस क एक थैल को बार-बार उछालते थे। मीर शकार ने कहा—मा लक से अबक पगड़ी दुप ा लू ंगा। 5

पताजी ने खलकर कहा—अबे कतनी पग ड़यां लेगा? इतनी बेभाव क दूं गा क सर के बाल गंजे हो जायगे। पामर बोला—सरकार अब क कु छ जी वका लू ं। पताजी

खलकर बोले—अबे

कतनी खायेगा;

खला- खला कर पेट

फाड़ दूं गा। सहसा महर घर म से नकल । कुछ घबरायी-सी थी। वह अभी कु छ बोलने भी न पायी थी क मीर शकार ने ब दूक फैर कर ह तो द । ब दूक छूटनी थी क रोशन चौक क तान भी छड़ गयी, पामर भी कमर कसकर नाचने को खड़ा हो गया। महर —अरे तु म सब के सब भंग खा गये हो गया? मीर शकार— या हु आ? महर —हु आ

या लड़क ह तो फर हु ई है?

पता जी—लड़क हु ई है? यह कहते-कहते वह कमर थामकर बैठ गये मानो व

गर पड़ा।

घमंडीलाल कमरे से नकल आये और बोले—जाकर लेडी डा टर से तो पू छ। अ छ तरह दे ख न ले। दे खा सु ना, चल खड़ी हु ई। महर —बाबू जी, मने तो आंख दे खा है ! घमंडीलाल—क या ह है ? पता—हमार तकद र ह ऐसी है बेटा! जाओ रे सब के सब! तु म सभी के भा य म कु छ पाना न लखा था तो कहां से पाते। भाग जाओ। सकड़ पये पर पानी फर गया, सार तैयार

म ी म मल गयी।

घमंडीलाल—इस महा मा से पू छना चा हए। म आज डाक से जरा बचा क खबर लेता हू ं । पता—धू त है, धू त! घमंडीलाल—म उनक सार धू तता नकाल दूं गा। मारे डंड के खोपड़ी न तोड़ दूं तो क हएगा। चांडाल कह ं का! उसके कारण मेरे सकड़

पये पर

पानी फर गया। यह सेजगाड़ी, यह गाय, यह पलना, यह सोने के गहने कसके सर पटकूं । ऐसे ह उसने कतन ह को ठगा होगा। एक दफा बचा

ह मर मत हो जाती तो ठ क हो जाते।

पता जी—बेटा, उसका दोष नह ,ं अपने भा य का दोष है । 6

घमंडीलाल—उसने लए कतने ह

य कहा ऐसा नह ं होगा। औरत से इस पाखंड के

पये ऐंठे ह गे। वह सब उ ह उगलना पड़ेगा, नह ं तो पु लस

म रपट कर दूं गा। कानू न म पाखंड का भी तो दं ड है । म पहले ह च का था क हो न हो पाखंडी है ; ले कन मेर सलहज ने धोखा दया, नह ं तो म ऐसे पािजय के पंजे म कब आने वाला था। एक ह सु अर है । पताजी—बेटा स

करो। ई वर को जो कुछ मंजू र था, वह हु आ।

लड़का-लड़क दोन ह ई वर क दे न है , जहां तीन ह वहां एक और सह । पता और पु

म तो यह बात होती रह ं। पामर, मीर शकार आ द ने

अपने-अपने डंडे संभाले और अपनी राह चले। घर म मातम-सा छा गया, लेडी डॉ टर भी वदा कर द गयी, सौर म ज चा और दाई के सवा कोई न रहा। वृ ा माता तो इतनी हताश हु ई क उसी व त अटवास-खटवास लेकर पड़ रह ं। जब ब चे क बरह हो गयी तो घमंडीलाल

ी के पास गये और

सरोष भाव से बोले— फर लड़क हो गयी! न पमा— या क ं , मेरा

या बस?

घमंडीलाल—उस पापी धू त ने बड़ा चकमा दया। न पमा—अब

या कह, मेरे भा य ह

म न होगा, नह ं तो वहां

कतनी ह औरत बाबाजी को रात- दन घेरे रहती थीं। वह कसी से कु छ लेते तो कहती क धू त ह, कसम ले लो जो मने एक कौड़ी भी उ ह द हो। घमंडीलाल—उसने लया या न लया, यहां तो दवाला नकल गया। मालू म हो गया तकद र म पु या आज डू बा,

नह ं लखा है । कु ल का नाम डू बना ह है तो

या दस साल बाद डू बा। अब कह ं चला जाऊंगा, गृह थी म

कौन-सा सु ख रखा है । वह बहु त दे र तक खड़े-खड़े अपने भा य को रोते रहे; पर न पमा ने सर तक न उठाया। न पमा के

सर

फर वह

वपि त आ पड़ी,

फर वह ताने, वह

अपमान, वह अनादर, वह छ छालेदार, कसी को चंता न रहती क खातीपीती है या नह ं, अ छ है या बीमार, दुखी है या सु खी। घमंडीलाल य य प कह ं न गये, पर न पमा को यह धमक

ाय: न य ह

मलती रहती थी।

कई मह ने य ह गु जर गये तो न पमा ने फर भावज को लखा क तु मने और भी मु झे वपि त म डाल दया। इससे तो पहले ह भल थी। अब तो 7

काई बात भी नह ं पू छता क मरती है या जीती है । अगर यह दशा रह तो वामी जी चाहे सं यास ल या न ल, ले कन म संसार को अव य

याग

दूं गी।

भा

4 भी य प

पाकर प रि थ त समझ गयी। अबक

उसने

न पमा को बु लाया नह ,ं जानती थी क लोग वदा ह न

करगे, प त को लेकर

वयं आ पहु ं ची। उसका नाम सु केशी था। बड़ी

मलनसार, चतु र वनोदशील

ी थी। आते ह आते न पमा क गोद म

क या दे खी तो बोल —अरे यह सास—भा य है और

या?

या?

सु केशी—भा य कैसा? इसने महा मा जी क बात भु ला द ह गी। ऐसा तो हो ह नह ं सकता क वह मु ंह से जो कुछ कह द, वह न हो। तु मने मंगल का

य जी,

त रखा?

न पमा—बराबर, एक सु केशी—पांच

त भी न छोड़ा।

ा मण को मंगल के दन भोजन कराती रह ?

न पमा—यह तो उ ह ने नह ं कहा था। सु केशी—तु हारा सर, मु झे खू ब याद है, मेरे सामने उ ह ने बहु त जोर दे कर कहा था। तु मने सोचा होगा,

ा मण को भोजन कराने से

या होता

है । यह न समझा क कोई अनु ठान सफल नह ं होता जब तक

व धवत ्

उसका पालन न कया जाये। सास—इसने कभी इसक चचा ह नह ं क ;नह ;ं पांच

या दस

ा मण

को िजमा दे ती। तु हारे धम से कु छ कमी नह ं है । सु केशी—कु छ नह ,ं भू ल हो गयी और

या। रानी, बेटे का मु ंह य

दे खना नसीब नह ं होता। बड़े-बड़े जप-तप करने पड़ते ह, तु म मंगल के



ह से घबरा गयीं? सास—अभा गनी है और

या?

घमंडीलाल—ऐसी कौन-सी बड़ी बात थीं, जो याद न रह ? ं वह हम लोग को जलाना चाहती है ।

सास—वह तो कहू ं क महा मा क बात कैसे न फल हु ई। यहां सात

बरस ते ‘तु लसी माई’ को दया चढ़ाया, जब जा के ब चे का ज म हु आ। घमंडीलाल—इ ह ने समझा था दाल-भात का कौर है ! 8

सु केशी—खैर, अब जो हु आ सो हु आ कल मंगल है, फर अब क सात

त रखो और

ा मण को िजमाओ, दे ख, कैसे महा मा जी क बात नह ं पू र

होती। घमंडीलाल- यथ है , इनके कये कुछ न होगा। सु केशी—बाबू जी, आप व वान समझदार होकर इतना दल छोटा करते ह। अभी आपकक उ

या है ।

कतने पु

ल िजएगा? नाक दम न हो

जाये तो क हएगा। सास—बेट , दूध -पू त से भी कसी का मन भरा है । सु केशी—ई वर ने चाहा तो आप लोग का मन भर जायेगा। मेरा तो भर गया। घमंडीलाल—सु नती हो महारानी, अबक

कोई गोलमोल मत करना।

अपनी भाभी से सब योरा अ छ तरह पू छ लेना। सु केशी—आप

नि चंत रह, म याद करा दूं गी;

होगा, कैसे रहना होगा कैसे

या भोजन करना

नान करना होगा, यह सब लखा दूं गी और

अ मा जी, आज से अठारह मास बाद आपसे कोई भार इनाम लू ंगी। सु केशी एक स ताह यहां रह और न पमा को खू ब

सखा-पढ़ा कर

चल गयी।



5 पमा का एकबाल

फर चमका, घमंडीलाल अबक

इतने

आ वा सत से रानी हु ई, सास फर उसे पान क भां त फेरने

लगी, लोग उसका मु ंह जोहने लगे। दन गु जरने लगे, न पमा कभी कहती अ मां जी, आज मने दे खा क वृ

व न

ी ने आकर मु झे पु कारा और एक ना रयल दे कर बोल , ‘यह

तु ह दये जाती हू;ं कभी कहती,’अ मां जी, अबक न जाने

य मेरे दल

म बड़ी-बड़ी उमंग पैदा हो रह ह, जी चाहता है खू ब गाना सु न,ू ं नद म खू ब नान क ं , हरदम नशा-सा छाया रहता है । सास सु नकर मु कराती और कहती—बहू ये शु भ ल ण ह। न पमा चु पके-चु पके माजू र मंगाकर खाती और अपने असल ने

ताकते हु ए घमंडीलाल से पू छती-मेर आंख लाल ह

या?

से

घमंडीलाल खु श होकर कहते—मालू म होता है, नशा चढ़ा हु आ है । ये शु भ ल ण ह। 9

न पमा को सु गंध से कभी इतना

ेम न था, फू ल के गजर पर अब

वह जान दे ती थी। घमंडीलाल अब

न य सोते समय उसे महाभारत क

पढ़कर सु नाते, कभी गु कथा से

वीर कथाएं

गो वंद संह क त का वणन करते। अ भम यु क

न पमा को बड़ा

ेम था। पता अपने आने वाले पु

को वीर-

सं कार से प रपू रत कर दे ना चाहता था। एक दन न पमा ने प त से कहा—नाम

या रखोगे?

घमंडीलाल—यह तो तु मने खू ब सोचा। मु झे तो इसका

यान ह न

रहा। ऐसा नाम होना चा हए िजससे शौय और तेज टपके। सोचो कोई नाम। दोन हर च

ाणी नाम



या या करने लगे। जोरावरलाल से लेकर

तक सभी नाम गनाये गये, पर उस असामा य बालक के लए

कोई नाम न मला। अंत म प त ने कहा तेगबहादुर कैसा नाम है । न पमा—बस-बस, यह नाम मु झे पस द है ? घमंडी लाल—नाम ह तो सब कु छ है । दमड़ी, छकौड़ी, घु रहू, कतवा , िजसके नाम दे खे उसे भी ‘यथा नाम तथा गु ण’ ह पाया। हमारे ब चे का नाम होगा तेगबहादुर। 6 सव-काल आ पहु ं चा। न पमा को मालू म था क

या होने वाल

है ; ले कन बाहर मंगलाचरण का पू रा सामान था। अबक को लेशमा

भी संदेह न था। नाच, गाने का

कसी

बंध भी कया गया था। एक

शा मयाना खड़ा कया गया था और म गण उसम बैठे खु श-गि पयां कर रहे थे। हलवाई कड़ाई से पू रयां और मठाइयां नकाल रहा था। कई बोरे अनाज के रखे हु ए

थे क शु भ समाचार पाते ह

भ ुक को बांटे जाय। एक



का भी वल ब न हो, इस लए बोर के मु ंह खोल दये गये थे। ले कन न पमा का दल

त ण बैठा जाता था। अब

या होगा?

तीन साल कसी तरह कौशल से कट गये और मजे म कट गये, ले कन अब वपि त सर पर मंडरा रह है । हाय! नरपराध होने पर भी यह दं ड! अगर भगवान ् क इ छा है

क मेरे गभ से कोई पु

न ज म ले तो मेरा

दोष! ले कन कौन सु नता है । म ह अभा गनी हू ं म ह कलमु ंह हू ं इसी लए न क परवश हू! ं

या

या य हू ं म ह

या होगा? अभी एक

ण म यह

सारा आनंदा सव शोक म डू ब जायेगा, मु झ पर बौछार पड़ने लगगी, भीतर 10

से बाहर तक मु झी को कोसगे, सास-ससु र का भय नह ,ं ले कन शायद फर मेरा मु ंह न दे ख, शायद नराश होकर घर-बार

वामी जी

याग द। चार

तरफ अमंगल ह अमंगल ह म अपने घर क , अपनी संतान क दुदशा दे खने के लए

य जी वत हू ं । कौशल बहु त हो चु का, अब उससे कोई आशा नह ं।

मेरे दल म कैसे-कैसे अरमान थे। अपनी

यार बि चय का लालन-पालन

करती, उ ह याहती, उनके ब च को दे खकर सु खी होती। पर आह! यह सब अरमान झाक म मले जाते ह। भगवान ्! तु ह अब इनके पता हो, तु ह ं इनके र क हो। म तो अब जाती हू ं । लेडी डॉ टर ने कहा—वेल! फर लड़क है । भीतर-बाहर कुहराम मच गया, प स पड़ गयी। घमंडीलाल ने कहा— जह नु म म जाये ऐसी िजंदगी, मौत भी नह ं आ जाती! उनके पता भी बोले—अभा गनी है , व

अभा गनी!

भ ुक ने कहा—रोओ अपनी तकद र को हम कोई दूसरा

वार दे खते

ह। अभी यह शोकादगार शांत न होने पाया था क डॉ टर ने कहा मां का हाल अ छा नह ं है । वह अब नह ं बच सकती। उसका दल बंद हो गया है ।

11

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यह. Ǒदन तो कोई लौटा न लेगा। पुğ हु आ तो कहना हȣ Èया, पुğी हु ई तो ͩफर. Page 3 of 11. 020. Nairashya.pdf. 020. Nairashya.pdf. Open. Extract.

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Bus: 020 A
Bus: 020 A. Driver: IRIS GRIFFIN -. Bus Config: REG. Route Notes: Run: BET.053. (ROUTE # 053 TO BET SUMMER BRIDGE PRGM). Description. Stop. Time ... 20. SCHOOL: BETHEL HIGH SCHOOL, 1067 BIG BETHEL RD. 8:20 AM. BET.000. 21. ALUMINUM BUS LOT. 8:34 AM.

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CORPORATE HEADQUARTERS: 4050 Color Plant Road, Springfield IL 62702 | 800.624.0261. WEST COAST FACILITY: 1371 Laurel Avenue, Rialto CA 92376 ...

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Campina – Belém/PA – CEP: 66017-060 ... Belém, 08 de novembro de 2016. ... DECLARACAO 020-2016 ad referendum concuursos FAV Homologacao.pdf.

020-023 vol 11.pdf
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Esta singular travesía, olvidada durante En las Navidades de 1977 el Speleo Club. décadas, ha sido reequipada y balizada en marzo Cántabro descubre las simas de Torca Juñoso y. del 2015 dentro del magnífico plan de Torca Ancha, entradas naturale

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Gota a gota, no 9 (2015): 12-20. Page 3 of 9. 012-020 vol 9.pdf. 012-020 vol 9.pdf. Open. Extract. Open with. Sign In. Main menu. Displaying 012-020 vol 9.pdf.Missing:

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Paginas 016-020.pdf
E-mail: [email protected]. (2)Departamento de Zoología, Facultad de Ciencias, Universidad de Granada,. Campus Fuentenueva s/n, 18071, Granada, España.

020-031 vol 12.pdf
The materials used are all stainless, and like the resins, the best quality offered by the market, always seeking the highest. standards of safety and durability.

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RESUMEN: Esta singular travesía, olvidada durante décadas, ha sido reequipada y balizada en marzo del. 2015 dentro del magnífico plan de conservación de ...

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Los materiales utilizados son todos inoxida- situadas en las proximidades del pkm 2, y 150 m bles, y al igual que las resinas, de la mejor calidad más adelante ...

010-020 vol 6.pdf
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Captain Midnight 020.pdf
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